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गांधी का सपना, कैसा हो गांव अपना

सालों पहले भारत के ग्रामीण परिवेश पर अपनी राय व्यक्त करते हुए महात्मा गांधी ने कहा था “भारत की स्वतंत्रता का अर्थ पूरे भारत की स्वतंत्रता होना चाहिए, और इस स्वतंत्रता की शुरुआत नीचे से अर्थात गांव से होनी चाहिए तभी प्रत्येक गांव एक गणतंत्र बनेगा।” अगर हम महात्मा गांधी के इस विचार को समझने की कोशिश करें तो इसके अनुसार प्रत्येक गांव को आत्मनिर्भर और सक्षम होना जरूरी है। यहां हमें यह समझने की जरूरत है कि गांधी जी ने ग्राम के गणतन्त्र रूप की कल्पना की है जो गांव को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रेरित करता है। महात्मा गांधी के इसी सपने को साकार करने के लिए हिंदुस्तान में ग्राम पंचायतों और ग्राम सभाओं को स्थानीय विकास और स्थानीय प्रशासन का मुख्य आधार बनाया गया है। ग्राम पंचायत और भारतीय अर्थव्यवस्था के विषय पर गांधी जी का विचार स्पष्ट था। उनका मानना था कि यदि हिंदुस्तान के प्रत्येक गांव में कभी पंचायती राज स्थापित हुआ तो मैं अपनी इस तस्वीर की सच्चाई सिद्ध कर सकूंगा जिसमें सबसे पहला व्यक्ति और सबसे आखिरी व्यक्ति दोनों बराबर होंगे। और यही व्यवस्था हमारे लोकतंत्र को और भी ज्यादा मजबूत करेगा। “मेरे सपनों का भारत” नामक पुस्तक में लिखा गया है कि प्रत्येक गांव में एक गणराज्य के सभी गुण होने चाहिए। जिसमें स्वावलम्बन, स्वशासन आवश्यकतानुसार स्वतंत्रता और विकेन्द्रीकरण तथा कार्यपालिका, व्यवस्थापिका और न्यायपालिका के सभी अधिकार पंचायत के पास हों। कोई भी फैसला आम सहमति या जनहित में होना चाहिए, न कि व्यक्तिगत हित में। ग्रामीण परिवेश के प्रत्येक व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकता भोजन, कपड़ा, आवास का प्रबन्ध गांव अपने स्तर पर करेगा। लोगों द्वारा निर्वाचित जन-प्रतिनिधियों की जिम्मेदारी सुनिश्चित होगी । कदाचार, अनैतिकता और जनहित के विपरीत आचरण की स्थिति में जन-प्रतिनिधि पर आवश्यक कार्रवाई होगी और सत्ता का विकेंद्रीकरण नीचे से ऊपर की ओर होगा। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का सामाजिक समानता का विचार भी ग्राम आधारित है, क्योंकि गांधी जी अच्छी तरह जानते थे कि भारत गांवों का देश है और भारत की वास्तविक आत्मा गांवों में बसती है। जब तक गांव संपन्न नहीं होंगे तब तक देश के वास्तविक विकास की कल्पना नहीं की जा सकती। महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज की सोच में भारत के आर्थिक आधार के लिए गांव को ही सशक्त करने की बात कही गई है। ग्राम स्वराज/ग्रामीण स्वशासन की अवधारणा गांधी जी के चिंतन का मुख्य केंद्र बिंदु हुआ करता था। गांधी जी के ग्राम स्वराज की अवधारणा को उनके दो प्रमुख सिद्धांतों सत्य और अहिंसा के संदर्भ में समझना चाहिए। ग्राम स्वराज एक विशिष्ट सिद्धांत है जिसे गांधी जी ने प्रतिपादित किया था और आगे चलकर आचार्य विनोबा भावे ने भूदान कार्यक्रम के माध्यम से इस विचार को आगे बढ़ाया था। गांधी जी के अनुसार स्वराज शब्द स्वतंत्रता और आत्म निर्भरता की ओर एक निरंतर कोशिश है जो कि वास्तविक अर्थों में स्वशासन को परिभाषित करता है। गांधी जी के विचारों में, प्रत्येक गांव को एक आत्मनिर्भर स्वायत्त इकाई के रूप में स्थापित करना ही ग्राम स्वराज की अवधारणा का मुख्य उद्देश्य है। उनके अनुसार, ग्राम स्वराज का वास्तविक अर्थ आत्मबल से परिपूर्ण होना है। गांधी जी ने स्वराज की कल्पना एक पवित्र अवधारणा के सन्दर्भ में भी की है जिसके मूलभूत तत्व हैं आत्म अनुशासन और आत्मसंयम। बापू के विचार के अनुसार स्वराज गांव में बसता है और वे ग्रामीण परिवेश के उद्योगों की दुर्दशा से बहुत चिंतित थे। खादी को बढ़ावा देना तथा विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार उनके जीवन का आदर्श था। गांधी जी का कहना था कि खादी का मूल उद्देश्य प्रत्येक गांव को अपने भोजन एवं कपड़े के विषय में स्वावलंबी बनाना है। उनका यह विचार एक ऐसे समय में आया जब पूरी दुनिया बुनियादी वस्तुओं की खरीद के लिए संघर्ष कर रही है ऐसे में गांधी जी का ग्राम-स्वराज एवं स्वदेशी का विचार ही हमारा सही मार्गदर्शन कर सकता है। वैश्वीकरण की प्रक्रिया ने पूरे विश्व को वैश्विक गांव में परिवर्तित कर दिया है। भारत जैसे एक विकासशील देश की नीति यही होनी चाहिए कि वह गांधी जी के ग्राम-स्वराज और स्वदेशी की अवधारणा का अनुसरण कर आगे बढ़े। हिंदुस्तान का गांव सामाजिक संगठन की एक महत्वपूर्ण इकाई है। इसीलिए गांधी जी का स्वदेशी तथा ग्राम-स्वराज का नारा ही सच्चे अर्थों में भारत को एक ‘आत्मनिर्भर भारत’ के रूप में परिवर्तित कर सकता है अतः हमें देश के विकास के लिए नीति बनाते वक्त उनके विचारों को जरूर ध्यान में रखना चाहिए।